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Tuesday, March 18, 2008

मुट्ठी भर खुला आसमान

शनिवार था। अचानक फ़िल्म देखने का मूड बना, बराए सुझाव अजय- रोमानियन फ़िल्म- 'फोर मंथ्स , थ्री वीक, टु डेज।' १९८७ का पीरियड। तब गर्भपात अवैध था। इसके लिए क्या-क्या दिक्कतें आती हैं। उफ़! देखने योग्य फ़िल्म। हालांकि इसे फिल्मकार ने दोस्ती की अद्भुत मिसाल का रूप दिया है। यह भी है। ज़रूर देखें।
टिकट लेने जब विंडो खोज रही थी, तब अपने आगे अपनी ही उम्र की एक महिला को भागते देखा। पाता चला, वह भी इसी फ़िल्म के लिए आई है, अखबारों में रिव्यू पढ़कर। अकेली। वह भी, मैं भी। ऐसे में दुकेले हो जाना हम दोनों को अच्छा लगा। उसने एक और मरित्थी फ़िल्म की कहानी बताई। कहानी सुनकर लगा कि यह तो नाटक का विषय लगता है। आकर पढा तो सचमुच नाटक पर आधारित फ़िल्म। अश्विनी भावेकर अच्छी और संवेदनशील कलाकार है। हिन्दी में उसका उपयोग सही तरीके से नही हो सका।
मुझे उस महिला कि एक बात अच्छी लगी- "अब हमें संग साथ की कामना छोड़ देनी चाहिए। अकेले निकालो, एन्जॉय करो। '
सचमुच, महिलाएं अभी तक संग साथ की ही कामना में रह जाती हैं और अपने हिस्से के आसमान का छोटा सा टुकडा जो होता है, उसे भी खो बैठती हैं। शुक्रिया स्मृति, इस बात की स्मृति के लिए!

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