tag:blogger.com,1999:blog-813572674361777059.post4557584037310410669..comments2023-10-25T18:23:00.807+05:30Comments on chhammakchhallo kahis: हां जी हां, हम तो छिनाल हैं ही! तो?Vibha Ranihttp://www.blogger.com/profile/12163282033542520884noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-813572674361777059.post-56337069003991745822010-08-19T09:25:42.030+05:302010-08-19T09:25:42.030+05:30विभा जी ,
आपसे 100 % सहमत | हमेशा से यही होता आय...विभा जी , <br />आपसे 100 % सहमत | हमेशा से यही होता आया है | इस तरह की मानसिकता वाले लोगों को इसी तरह से जवाब देने की जरूरत है| पर पता नहीं सालों से चली आ रही सोच किस तरह के जवाब या प्रतिकार से बदलेगी |abhahttps://www.blogger.com/profile/16805638236786752281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-813572674361777059.post-56857224338317360882010-08-09T16:47:18.648+05:302010-08-09T16:47:18.648+05:30ऐसे लोगों को कितना ही सुनाया जाये क्या वे अपनी मान...ऐसे लोगों को कितना ही सुनाया जाये क्या वे अपनी मानसिकता बदल सकते हैं, शायद नहीं - ये चर्चित होने के लिए एक विषय प्रस्तुत कर हैं. सदियाँ गुजार गयीं और नारी के ऊपर लगा हुआ ये तमगा न कभी हटा है और न हटेगा. भले ही वे ऐसे पुरुषों को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ चुकी हैं लेकिन वे अपनी ढपली पर वही राग छेड़ते हैं जिससे उनके अहम् को संतुष्टि मिले. वैसे ऐसे लोगों पर सिर्फ तरस आता है कि वे किस खुशफहमी में जी रहे हैं.रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-813572674361777059.post-30205329452141368872010-08-07T22:38:29.707+05:302010-08-07T22:38:29.707+05:30"आखिरकार आप इस महान सीता सावित्रीवाले परम्परा..."आखिरकार आप इस महान सीता सावित्रीवाले परम्परागत देश की है, जहां विष्णु और इंद्र जैसे देवतागण वृन्दा और अहल्या के साथ छल भी करते रहने के बावज़ूद पूजे जाते रहे हैं, पूजे जाते रहेंगे."<br /><br />किन शब्दों में कहूँ आपके दिल का तो पता नहीं, पर मैंने अपना दिल इस लेख पर निकाल के रख दिया ! औरत की परवाज़ को हर दफा उसके चरित्र के दम पे तोडा गया है ..गर कोई नारी बुलंदियों को छूती है, कई लोगों की सांसें टूटने लगती हैं , कुछ समय बाद अपने भी "देहलीज़" के मायने समझाने लगते हैं .और ऐसे में उनका कहना आपका मौके पर लिखना , कहीं न कहीं सोच में मोड़ लाता है ..यहाँ हम और सशक्त होते हैं .आशा है ये शक्ति एक जुट हो कर इस औरत को "देवी या धुल " (दोनों ही जीव की श्रेणी में नहीं आते ) मानने वाले संसार से बाहार निकालेगी .लिखते रहिये सच ,ये काटता सच !दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMAhttps://www.blogger.com/profile/12486880239305153162noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-813572674361777059.post-58544350373562275882010-08-07T16:01:41.080+05:302010-08-07T16:01:41.080+05:30असहमत होने पर तो बोली अक्सर बंद हो जाती है लेकिन य...असहमत होने पर तो बोली अक्सर बंद हो जाती है लेकिन ये सचमुच विचित्र स्थिति है कि सहमत होने पर भी बोलती बंद है , वो भी मेरी ..., जो बोलने के लिये ही जानी जाती है.ऐसा करारा व्यंग्य , ऐसी मारक धार ..., कमेन्ट करने के लिये भी सौ-सौ दफ़ा सोचना होगा कि अब कहा क्या जाय ? सिर्फ़ एक ही राय कि हाँ अब जवाब देने के लिये इसी भाषा की ज़रूरत है क्योंकि ”वो” लोग इससे कम में अब कुछ समझना ही नहीं चाहते. हम औरतों को भी अब कुछ ऐसे ही दुस्साहस का साहस जुटाना ही होगा.pratima sinhahttps://www.blogger.com/profile/00813155406463079771noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-813572674361777059.post-89668828230150698622010-08-06T19:14:08.780+05:302010-08-06T19:14:08.780+05:30छि.... उसकी गन्दी सोच पर...थू....छि.... उसकी गन्दी सोच पर...थू....भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-813572674361777059.post-53270682559906448882010-08-06T17:51:03.771+05:302010-08-06T17:51:03.771+05:30चूंकि सभी धर्मग्रन्थों की रचना पुरुषों द्वारा हुई,...चूंकि सभी धर्मग्रन्थों की रचना पुरुषों द्वारा हुई, इसलिये पुरुषों ने खुद को नारियों से ऊपर ही रखा।<br />लेकिन आयेगी क्रान्ति कभी तो……॥<br />बेहतरीन व्यंग्य <br />आभार<br /><br />प्रणाम स्वीकार करेंअन्तर सोहिलhttps://www.blogger.com/profile/06744973625395179353noreply@blogger.com