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छम्मक्छल्लो का उन सबको प्रणाम, जो हमें सेक्स ऑबजेक्ट बनाने पर आमादा हैं. पोर्न साहित्य देखें, पढें तो आप अश्लील. छम्मक्छल्लो उन्हें अधिक ईमानदार मानती है. छम्मक्छल्लो उनकी बात कर रही है, जो आम जीवन के हर क्षेत्र में हमारी आंख में उंगली डाल डालकर ये बताने में लगे रहते हैं कि ऐ औरत, तुम केवल और केवल सेक्स और उन्माद की वस्तु हो. भले ही तुममें प्रतिभा कूट कूट कर भरी हो, तुम सानिया हो कि शाइना, हमें उसका क्या फायदा, जब हम तुम्हारे हाथों की कला के भीतर से झांकते तुम्हारे यौवन के उन्माद की धार में ना बहें? हाथों की कला तो बहाना है, हमें तो तुहारे यौवन के मद का लुत्फ उठाना है.
आज (22/4/2011) के टाइम्स ऑफ इंडिया के चेन्नै टाइम्स में विश्व के तीसरे नम्बर की बैडमिंटन खिलाडी शाइना नेहवाल द्वारा रुपम जैन को दिए इंटरव्यू में शाइना नेहवाल कहती है कि वह बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन के इस फैसले से खुश नहीं है कि खेल के दौरान महिला खिलाडी शॉर्ट्स के बदले स्कर्ट पहने. मगर, फेडरेशन मानता है कि इससे खेल और पॉपुलर होगा. भाई वाह! समाज में जो दो चार अच्छे पुरुष हैं, इस मानसिकता के खिलाफ आप तो आवाज उठाइए. कामुकों की कालिख की कोठरी में आप पर भी कालिख लग रही है. शाइना कह रही है कि लोग खेल देखने आते हैं, खिलाडियों की पोशाक नहीं. पर फेडरेशन यह माने, तब ना!
अब भाई लोग यह फतवा न दें मेहरबानी से कि ऐसे में शाइना को विरोध करना चाहिये, उसे खेल छोड देना चाहिए. जो भाई लोग स्त्रियों के सम्मान के प्रति इतने ही चिंतित हैं, जिसका ठेका कुछ ने लिया हुआ होता है तो उनसे छम्मक्छल्लो का निवेदन है कि बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन पर दवाब डालें. शाइना मानती है कि ड्रेस का फैसला खिलाडियों पर छोड दिया जाना चाहिए. उसने स्वीकारा है कि अकेला चना भाड नहीं फोड सकता. वह इंतज़ार में है कि अन्य खिलाडी भी स्कर्ट से होनेवाली असुविधा के खिलाफ बोलेंगे और तब सामूहिक स्वर उठेगा, जिसको फायदा खिलाडियों को होगा. मगर तबतक बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन की भोगवादी मानसिकता के प्रति शत शत नमन कि वह विश्व की महिला खिलाडियों के खेल का आनंद तो आगे-पीछे, इसके बहाने उनकी देह, यौवन और यौन का आस्वाद आपको कराएंगे.
अब यह न कहिएगा कि यह फैसला बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन में बैठी किसी महिला अधिकारी ने लिया होगा, क्योंकि महिलाएं ही महिलाओं की सबसे बडी दुश्मन होती हैं.
kya vyanga marte hain ji......bilkul tar-tar kar dete hain....banda jar-jar ho jai......
ReplyDeletebravo...great effort..keep it up....
pranam.
छल्लो जी मुझे तो लगा था की बैडमिन्टन खिलाडियों द्वारा पहने जा रहे छोटे निक्कर ज्यादा सेक्सी होते है और फेडरशन ने लोगों का ध्यान खिलाडियों के खेल की तरफ मोड़ने के लिए ही स्कर्ट का प्रावधान किया है पर आपके विचारों से लगता है की बात उल्टी है. तो क्या लान टेनिस महिला खिलाडियों की स्कर्ट की वजह से ज्यादा लोकप्रिय है.
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ReplyDeleteविभा जी, आपका एतराज़ सही है.. और यह भी सच है कि ्मुझ सहित अधिकाँश पुरुषों की दृष्टि नाचती हुई शटल कॉक से अधिक बहिन जी की जाँघों और छातियों पर होती है । यदि स्कर्ट का फतवा एक सर्वमान्य ड्रेस-कोड के चलते दिया गया है, तो ठीक । हम न बोलें खिलाड़ियों को ही विरोध करने दें, यदि किसी पुरुष विशेष का खास स्कर्ट-प्रेम उज़ागर हो.. तो मीडिया या पब्लिक अपनी कोई मुहिम बना सकती है । मैं नहीं समझता कि स्कर्ट पहनने से खेल की गुणवत्ता में कोई अँतर आयेगा !
अमर जी, खबर में यह था कि फेडरेशन ने यह कहा कि स्क्र्ट पहनने से लोग अधिक संख्या मे खेल देखने आएंगे.यह तो खिलाडी की प्रतिभा का भी अपमान है. बात फिर वहीं हो गई कि स्त्री हो गई सेक्स ऑब्जेक्ट?
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