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Thursday, August 12, 2010

क्या कुछ भी नहीं था हमारे पास?

तब हमारे पास फोन नहीं था,

बूथ या दफ्तर से फोन करके

तय करते थे- मिलना-जुलना

पहुंच भी जाते थे, बगैर धीरज खोए नियत जगह पर

अंगूठे को कष्ट पहुंचाए बिना.

घरवालों को फोन करना तो और भी था मंहगा

चिट्ठी ही पूरी बातचीत का इकलौता माध्यम थी

तब हमारे पास गाडी नहीं थी,

घंटों बस की लाइन में लगकर पहुंचते थे गंतव्य तक

पंद्रह मिनट की दूरी सवा घंटे में तय कर

तब गैस चूल्हा नहीं था हमारे पास

केरोसिन के बत्तीवाले स्टोव पर

हाथ से रोटियां ठोक कर पकाते-खाते

सोने के लिए तब हमारे पास होता एक कॉट, एक चादर

तौलिए को ही मोड कर तकिया बना लेते

पुरानी चादर, साडियां, दुपट्टे

दरवाज़े, खिडकियों के पर्दे बन सज जाते

क्रॉकरी भी नही थी

तीस रुपए दर्ज़नवाले कप में पीते-पिलाते थे चाय

कॉफी तो तब रईसी लगती

बाहर खाने की तो सोच भी नहीं सकते थे

न डिनर सेट, न फ्रिज़, न मिक्सी, न टीवी

बस एक रेडियो था और एक टेप रेकॉर्डर- टू इन वन

चंद कपडे थे- गिने-चुने

चप्पल तो बस एक ही- दफ्तर, बाज़ार, पार्टी सभी के लिए

कुछ भी नहीं था हमारे पास.

क्या सचमुच कुछ नहीं था हमारे पास?

ना, ग़लत कह दिया

तब नहीं थी हमारे पास सम्पन्नता

हमारे पास थी प्रसन्नता!

8 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इस सब बिम्बों से आज की ज़िंदगी का खाका खींचा है ...आज सब कुछ होते हुए भी इंसान संतुष्ट नहीं है ..

रेखा श्रीवास्तव said...

बहुत सही वर्णन किया है , किया क्या है अपने को ही तो हम दर्पण दिखा रहे हैं. तब कुछ न होने पर खुश थे, हर नई चीज को जुटाने में जुटे रहते थे. फुरसत ही कहाँ थी की अपने अभावों को देखते ? बस एक सफर था बगैर पीछे देखे अपनी धुन में चलाने का. जितना मिल गया उससे और ज्यादा पर निगाह है तब हम खुश कैसे राहें? सोच तो हमारी ही बदल गयी.

रेखा श्रीवास्तव said...

बहुत सही वर्णन किया है , किया क्या है अपने को ही तो हम दर्पण दिखा रहे हैं. तब कुछ न होने पर खुश थे, हर नई चीज को जुटाने में जुटे रहते थे. फुरसत ही कहाँ थी की अपने अभावों को देखते ? बस एक सफर था बगैर पीछे देखे अपनी धुन में चलाने का. जितना मिल गया उससे और ज्यादा पर निगाह है तब हम खुश कैसे राहें? सोच तो हमारी ही बदल गयी.

योगेन्द्र मौदगिल said...

sateek......sadhuwad..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मंगलवार 17 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपका इंतज़ार रहेगा ..आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार

http://charchamanch.blogspot.com/

अनामिका की सदायें ...... said...

सच कहा आपने . बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.

Vibha Rani said...

बहुत बहुत धन्यवाद अनामिका जी. योगेंद्र जी. आपा सबकी बातें उत्साह बढाती हैं. @संगीता जी, आपका प्रयास तो बेहद सराहनीय है. मैं गई थी आपके ब्लॉग पर. बहुत सुंदर.

चैन सिंह शेखावत said...

waah bahut achha..