छम्मकछल्लो यह देख कर बहुत खुश है कि हम अपनी संस्कृति, अपने महापुरुषों के प्रति बहुत श्रद्धावान और आस्थावान हैं. हमारे महापुरुष हमेशा से बडे हैं, बडे रहे हैं, बल्कि वे पैदा ही बडे रूप में होते हैं. तभी तो राम के जन्म के समय कौशल्या को कहना पडा-
“माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा,
कीजे सिसु लीला, अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा.”
ये सब बडे लोग हैं और अपनी संस्कृति के बडे लोग हैं, इसलिये हमारे सम्बोधन भी बडे हो जाते हैं, जैसे, कभी भी आप देखेंगे तो पाएंगे कि हमारे महापुरुष हमेशा “कहते” हैं. राम “कहते” हैं, कृष्ण “कहते” हैं, बुद्ध “कहते” हैं, महावीर “कहते” हैं, नेता जी “कहते” हैं, गांधी जी “कहते” हैं, टैगोर “कहते” हैं, बंकिम “कहते” हैं, शरत “कहते” हैं, प्रेमचन्द “कहते” हैं, देवराहा बाबा “कहते” हैं, रामदेव बाबा “कहते” हैं, रजनीश “कहते” हैं, यूसुफ साब और देव साब “कहते” हैं, अमर्त्य सेन “कहते” हैं, सत्यजित राय “कहते” हैं, आज के विक्रम सेठ और सलमान रुश्दी “कहते” हैं, अमितावा कुमार “कहते” हैं, शाहरुख़ से लेकर रणबीर कपूर तक सभी “कहते” हैं, और तो और हमारे आज के छुटभैये नेता तक भी “कहते” हैं. कभी भी कोई “कहता” नहीं है. अगर वह “कहता” है तो यह हमारा, हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता, हमारे महापुरुषों का अपमान है. और चाहे हमारी जान क्यों ना चली जाए, हम कभी भी अपने महापुरुषों का अपमान क़तई नहीं सह सकते. यह हमारी चेतना का प्रश्न है.
हमारी चेतना में यह प्रश्न कभी नहीं आता कि सिर्फ हमारे ही महापुरुष क्यों कहते हैं? दूसरे देशों में भी तो एक से एक महापुरुष हो गए हैं. लेकिन उनमें से कोई भी कभी भी कुछ “कहते” नहीं हैं. वे सभी केवल “कहता” है. बचपन से हम नाना किताबें पढते आये हैं और इन सब किताबों में इन महापुरुषों के बारे में पढते आये हैं. मगर हर जगह यही देखा कि ये सब “कहता” की श्रेणी में आते हैं. अब यक़ीन ना हो देख लीजिए कि प्लेटो “कहता” है, अरस्तू “कहता” है, कंफ्यूसियस “कहता” है, मार्क्स “कहता” है, नीत्शे “कहता” है, सार्त्र “कहता” है, लू शुन “कहता” है, शेक्सपियर “कहता” है, मिल्टन “कहता” है, शेली “कहता” है, कीट्स “कहता” है, ओबामा “कहता” है.
यह हिन्दीवालों की मति के क्या कहने और हम भी हिन्दी ही पढ कर बडे हुए हैं तो और कोई दूसरी भाषा समझ में ही नहीं आती. यह हिन्दीवालों का व्याकरण इतना कठिन करने की ज़रूरत ही क्या थी? सीधे-सीधे अंग्रेजी के व्याकरण की तरह रख देते- “only He, only You. न He के लिए ‘वह’ और ‘वे’ के झंझट और ना ‘You’ के लिए आप या तुम का झगडा. बस जी, He, You कहो और निकल लो. मगर ये हिन्दीवाले जो ना करें.
मगर क्यों कोस रहे हैं हम हिन्दीवालों को. यह तो हमारी सांस्कृतिक पहचान है, जो हमें विरासत में मिली है. हमारा काम है कि हम इस विरासत को पूरी ज़िम्मेदारी से आगे और आगे ले कर चलें और अपने वारिसों को यह विरासत सौंपें, ताकि वे भी हमारे अनुकरण में अपने महापुरुषों को पूरा-पूरा मान-समान देते रहें और “कहते” व “कहता” की परंपरा निरंतर ज़ारी रहे. दूसरों के महापुरुष तो दूसरों के हैं. उन्हें उतना आदर या तवज़्ज़ो देने की ज़रूरत?
12 comments:
shaabaas chmmakchhallo !
बहुत खुब..........
par devi jee , aap kya kahna chahti hai pahle ye to bataiye ?
kya bakwas likhti hain aap ! kuchh to socha kariye waise naam ke anuroop achchha hai .chhamkachhallo aur kaya likh sakti hai ?
मुझे तो इस पोस्ट में कुछ भी बकवास नहीं लगा
वीनस केसरी
छम्मकछल्लो जी,
यह तो भाषा -भाषा की बात हैं अब हिन्दी में - He के लिए ‘वह’ और ‘वे’ है और ‘You’ के लिए आप या तुम है तो वहीं बेचारी अंग्रेजी भी तो कल के मामले में मात खा जाती हैं। अब हम तो आज तक इस वाक्य के अंग्रेजी अनुवाद के लिए उलझे हुए हैं - "कल दो होते हैं - एक आने वाला और एक जाने वाला"
पर भाषाई शिष्टाचार पर उचित प्रश्न उठाया हैं आपने, उसके लिए बधाई ।
भई अपने इधर तो ऐसा है कि " मेरा पिताजी कहता है " और ...
बड़ी तीखी नज़र है आपकी...इस ओर तो मैँने कभी ध्यान ही नहीं दिया
बधाई स्वीकार करें
Bahut khoob...behad umdaa aur rochak lekh...
इससे एक बिहारी बंधू के साथ का वाक्या याद आ गया | उनसे पूछा गया की हवा बहती है की हवा बहता है ? तो पट से जवाब आया हवा बहे है
Is tarah ki uktion se ham apni bharas nikalte hain madam, kyonki videsh wale bhi hamare kalidas ko bharat ka shakespeare kahate hain lekin shakespeare ko europe ka kalidas nahin kahate.
me to kahata hu yehe sab kyo kahate hai
pawan
Dangawas
salo muje kuch bataoge ki plato kyo kahata hai
p dangawas
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