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Wednesday, May 20, 2009

हमारे देवी-देवताओं के जननेंद्रिय नहीं होते

नया ज्ञानोदय के अप्रैल 2009 अंक में प्रकाशित सुप्रसिद्ध मलयाली कवि के सच्चिदानंद की एक कविता उद्धृत है- "मैं एक अच्छा हिन्दू हूं /खजुराहो और कोणार्क के बारे में मैं कुछ नहीं जानता / कामसूत्र लो मैंने हाथ से छुआ तक नहीं दुर्गा और सरस्वती को नंगे रूप में देखूं तो मुझे स्वप्नदोष की परेशानी होगी हमारे देवी-देवताओं के जननेंद्रिय नहीं होते जो भी थे उन्हें हमने काशी और कामाख्या में प्रतिष्ठित कियाकबीर के राम को हमने अयोध्या में बंदी बनाया गांधी के राम को हमने गांधी के जन्मस्थान में ही जला दिया आत्मा को बेच कर इस गेरुए झंडे को खरीदने के बाद और किसी भी रंग को देखूं तो मैं आग-बबूला हो जाऊंगा मेरे पतलून के भीतर छुरी हैसर चूमने के लिए नहीं, काट-काट कर नीचे गिराने के लिए..."

यह मात्र संयोग ही नहीं है की हम कही भी कभी भी प्यार की बातें करते सहज महसूस नहीं करते। यहाँ प्यार से आशय छाम्माक्छाल्लो का उस प्यार से है जो सितार के तार की तरह हमारी नसों में बजता है, जिसकी तरंग से हम तरंगित होते हैं, हमें अपनी दुनिया में एक अर्थ महसूस होने लगता है, हमें अपने जीवन में एक रस का संचार मिलाने लगता है. मगर नहीं, इस प्यार की चर्चा करना गुनाह है, अश्लीलता है, पाप है और पाता नहीं, क्या-क्या है. हमारे बच्चों के बच्चे हो जाते हैं, मगर हम यह सहजता से नहीं ले पाते कि हमारे बच्चे अपने साथी के प्रति प्यार का इज़हार करें या अपने मन और काम की बातें बताएं. और यह सब हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति के नाम पर किया जाता है.
अभी- अभी छाम्माक्छाल्लो एक अखबार में पढ़ रही थी फिल्म निर्माता राकेश रोशन का इंटरव्यू, उनकी फिल्म काईट के बारे में, जिसमें उनके अभिनेता बेटे ने चुम्बन का दृश्य दिया है. साक्षात्कार लेनेवाले की परेशानी यह थी कि यह चुम्बन का दृश्य हृतिक रोशन ने किया कैसे, और एक पिता होने के नाते राकेश रोशन ने यह फिल्माया कैसे और उसे देखा कैसे? बहुत अच्छा जवाब दिया राकेश रोशन ने कि अब इस फिल्म में मैं प्रेम के लिए चुम्बन नहीं दिखाता तो क्या हीरो- हीरोइन को पेड़ के पीछे नाचता- गाता दिखाता? जान लें कि इस फिल्म कि नायिका भारतीय नहीं है. राकेश रोशन ने कहा कि एक अभिनेता के नाते उसने काम किया है, वैसे ही ,जैसे उसने कृष में लम्बी-लम्बी छलांगें लगाईं थीं.
जिस प्रेम से हमारी उत्पत्ति है, उसी के प्रति इतने निषेध भाव कभी-कभी मन में बड़ी वितृष्णा जगाते हैं. आखिर क्यों हम प्रेम और सेक्स पर बातें करने से हिचकते या डरते हैं? ऐसे में सच्छिदानंदन जी की बातें सच्ची लगती हैं कि हमारे देवी-देवताओं के जननेंद्रिय नहीं होते, और अब उन्हीं के अनुकरण में हमारे भी नही होते. आखिर को हम उन्हीं की संतान हैं ना. भले वेदों में उनके शारीरिक सौष्ठव का जी खोल कर वर्णन किया गया है और वर्णन के बाद देवियों को माता की संज्ञा दे दी जाती है, मानो माता कह देने से फिर से उनका शरीर, उनके शरीर के आकार-प्रकार छुप जायेंगे. वे सिर्फ एक भाव बनाकर रह जायेंगी. यक्ष को दिया गया युधिष्ठिर का जवाब बड़ा मायने रखता है कि अगर मेरी माता माद्री मेरे सामने नग्नावस्था में आ जाएँ तो मेरे मन में पहले वही भाव आयेंगे, जो एक युवा के मन में किसी युवती को देख कर आते हैं. फिर भाव पर मस्तिषक का नियंत्रण होगा और तब मैं कहूंगा कि यह मेरी माता हैं.
समय बदला है, हम नहीं बदले हैं. आज भी सेक्स की शिक्षा बच्चों को देना एक बवाल बना हुआ है, भले सेक्स के नाम पर हमारे मासूम तरह-तरह के अपराध के शिकार होते रहें. आज भी परिवारों में इतनी पर्दा प्रथा है कि पति-पत्नी एक साथ बैठ जाएँ तो आलोचना के शिकार हो जाएँ. अपने बहुचर्चित नाटक "वेजाइना मोनोलाग" के चेन्नई में प्रदर्शन पर बैन लगा दिए जाने पर बानो मोदी कोतवाल ने बड़े व्यंग्यात्मक तरीके से कहा था की इससे एक बात तो साबित हो जाती है की मद्रास में वेजाइना नहीं होते.
देवी देवता की मूर्ती गढ़ते समय तो हम उनके अंग-प्रत्यंग को तराशते हैं, मगर देवी देवता के शरीर की काट कोई अपनी तूलिका से कर दे तो वह हमारे लिए अपमान का विषय हो जाता है. छाम्माक्छाल्लो की समझ में यह नही आता कि इस दोहरी मानसिकता के साथ जी कर हम सब अपने ही समाज का कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं. देवी-देवता को हम भोग तो लगाते हैं, देवी देवता का मंदिरों में स्नान- श्रृंगार, शयन सबकुछ कराते हैं, मगर देवी देवता अगर देवी-देवता के जेंडर में हैं तो हम उनके लिंग पर बात क्यों नहीं कर सकते? आज भी सेक्स पर बात करना बहुत ही अश्लील मना जाता है. और यह सब इसलिए है की हम सब इसके लिए माहौल ही नहीं बना पाए हैं. एक छुपी-छुपी सी चीज़ छुपी-छुपी सी ही रहे, हर कोई इसे मन में तो जाने मगर इस पर बात ना करे, इस पर चर्चा ना करे. ऐसे में छाम्माकछाल्लो के साथ-साथ आप सबको भी यकीन करना होगा की हमारे देवी-देवताओं के जननेंद्रिय नहीं होते और उनके अनुसरण में हमारे भी.

12 comments:

sushant jha said...

अच्छा लेख...

RAJNISH PARIHAR said...

देवी देवताओं पर जननेंद्रिय के अलावा भी बहुत सी बातें की जा सकती है...!उनमे जो भी गुण आपको अछे लगे उन पर बात करें ना...!क्या बच्चों से जननेंद्रिय के अलावा बात करके नहीं समझाते हम?

डॉ .अनुराग said...

ऊपर की कविता फूहड़ ओर बेहूदा है...... भले की वो किसी ने भी लिखी हो.....
रही बात सेक्स की ...
हर चीज का एक समय ओर वक़्त होता है ....ये प्रकति का नियम है......सूचनाओं के इस विस्फोटक युग में नन्हे मस्तिष्क के लिए जिस तरह हिंसा हानिकारक होती है .....सेक्स का एक्स्पोसर भी उसके लिए उतना ही खतरनाक है....देवी देवताओं का जमाना अब गया ,....अब कोई बच्चा देवी देवताओं की बात नहीं पूछता ...कार्टून में जितने देवी देवता दिखते है वो उन्ही के बारे में पूछता है ..वैसे भी रामायण किसी भी बच्चे को अच्छी शिक्षा देने के लिए बताई जाती थी.ठीक वैसे ही जैसे आजकल स्कूलों में मोरल साइंस .....हम क्यों उन्हें वक़्त से पहले ये सूचनाये देना चाहते है ?????

हर्ष प्रसाद said...

मेरे प्रश्न श्री रजनीश परिहार और डॉ अनुराग जी की टिप्पणी से उपजे हैं. मुझे सच्चिदानंद जी के मौलिक काव्य ( जिस पर विभा जी ने बेहद सार्थक लेख लिखा है) के गुणों और अवगुणों से फि़लहाल कोई सरोकार नहीं. क्या एक शिल्पकार के लिए अपनी कृति के प्रत्येक अंग एक सामान नहीं होते?... क्या किसी शिल्प की जननेंद्रियाँ गढ़ते वक़्त उसकी मानसिकता बदल जाती है?... क्या वोह भी सृजन करते समय हम आलोचकों की तरह मानसिक रूप से सामाजिक अनुबंधनों से जकड़ा हुआ होता है?... क्या उसे भी अपनी कलात्मक व्याख्या को धार्मिक संकीर्णता की परिधि में सीमाबद्ध रखना चाहिए?... इन प्रश्नों को नकार कर हम विद्यापति के गीतों को जला क्यों नहीं देते?

Himanshu Pandey said...

के० सच्चिदानन्द ऐसी कविताये लिखते हैं ?
अनुराग जी की टिप्पणी से पूरा सरोकार ।

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

मन मे अच्छे विचार लाने से कलम पोजेटिव दीशा मे चलने लगेगी। हम कलम मे जो रन्ग की स्याही भरेगे अक्षर वैसे ही फुटेगे। अच्छे शिक्षाप्रद, लोककल्याण बाते घर परिवार देश मे अच्छे नोनिहालो कि फोज तैयार करती है और अभद्र भाषाओ का स्वरुप कल्याणकारी नही हो सकता। धर्माशास्त्रो का सही ज्ञान ईरले -विरले शास्त्रियो को ही है। जानकारी कम हो तो विवास्पद धार्मिक मुद्दे ना उठाने चाहिऐ। आपके सुहनरे एवम मगलमय जीवन के लिऐ शुभकामानाऐ।

आभार

आपका

मुम्बई टाईगर

हे प्रभु यह तेरापन्थ

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

@दुर्गा और सरस्वती को नंगे रूप में देखूं तो मुझे स्वप्नदोष की परेशानी होगी

किसी भी औरत को नंगे रूप में उछालना विक्Rति को ही दरशाता है. जिस हुसैन की वकालत में यह लिखा गया है, उस पतित में मादर टेरेसा या आयसा को नंगा दिखाने का साहस नहीं है.

@ कबीर के राम को हमने अयोध्या में बंदी बनाया:
कबीर् को हिन्दुओं के राम से कोई लेना देना नहीं था. सिर्फ़् सस्ती लफ़्फ़ाजी इस कविता को भौंडा बनाती है.

@गांधी के राम को हमने गांधी के जन्मस्थान में ही जला दिया
काश्मीर की तरह एक पूरी ्जमात को ही उजाडा तो नही.

@वेदों में उनके शारीरिक सौष्ठव का जी खोल कर वर्णन किया गया है
कौन से वेद का सन्दर्भ ले रही हैं जरा नाम और् सूक्त तो बताइयe. यह न पूछियेगा कि सूक्त क्या होता है?

नग्न स्त्री को स्वप्न में देख स्खलित होने में कोई बुराई नहीं. यह निहायत ही प्राक्Rतिक है लेकिन बेवक्त योनिपाठ की वकालत करना रोगी मानसिकता की ही परिचायक है.

सेक्स शिक्षा होनी चाहिए लेकिन उसके विरोध के विरोध में अनर्गल प्रलाप कर प्रतिक्रियावादी शक्तियों को बढावा हरगिज नहीं देना चाहिe

Girish Kumar Billore said...

सच्चिदानंद जी की कविता को मूर्खता भरे विचारों का कूड़ा ही कहूंगा रहा सवाल नया ज्ञानोदय का सो पेट के लिए छाप रहे हैं सो सब ठीक है वरना आप जैसे सुधि जन को विषय किधर से मिलता . कुछ लोग तो इस बात का रट्टा कब से लगाए हैं कि विषय ख़त्म हो गए सो बेचारे करें तो करें क्या . अब के कवि.............?

neeta said...

"दे शिट इन पब्लिक , दे पिस इन पब्लिक , बट दे नेवर किस इन पब्लिक"
हमारे बारे में यूं ही मशहूर नहीं है ... आपकी पोस्ट अच्छी और सकारात्मक लगी

नपुंसक भारतीय said...

Ms NEETA:

They piss in public... BECAUSE there is no place else. Tell me where you have seen good public toilets????

They shit in public... BECAUSE there is no place else. Tell me where you have seen good public toilets????

ALSO these are Basic activities of life.. and sometimes necessities... if you can not hold your piss and shit, then you have to let go...

BUT kissing, IS NOT a necessity to be DONE in public places.

Please educate yourself before you talk shit about Bhaarteeya people.

नपुंसक भारतीय said...

यदि कुछ अच्छा नहीं लिख सकते आप, तो भद्दा भी ना लिखें..
ख़ास कर माँ सरस्वती के बारे में.

यह आपकी ओछी मानसिकता और पारिवारिक प्रष्ठभूमि दिखाता है.

हुसैन के समर्थन से पहले अपनी माँ, बहन और बेटी की भी नग्न तस्वीर देख लें, फिर बाद में बातें करें.

Raushan Kumar said...

K.Sachidanand ki kavita padhne yah yaspath hai ki aap murtipooja ke virodhi hai. dharm ki bahoot kisi ko nahi malum hai. dharm ki pribhasha is prakar hai " Manus jin vicharo ko manta hai yahi uska dharm hai." yahi karan manus ka dharm vichar badalte hi parivartit ho jata hai. Aapki kavita se yaspath hai ki aap murtipuja ke virodhi hai. Lekin aapko murtipuja ka samarthak mantu hu. Kyounki aap apne maa-bahan ki photo ke muh (mouth) me pesab nahi kar sakte hai. yadi aap pesab kar sakte hai to aap murtipuja ke virodhi huye. aur yadi pesab(toilet) nahi kar pate hai to aap murtipuja ke samarthak huye. Aapki kavita me jo vichar hai usse yah yaspath hai ki aap murtipooja ke virodhi hai. yahi karan ki mai purn viswas ke sath kah sakte hai ki aap apne maa-bahan ke photo ke muh me pesab kar sakte hai. aapko bible ki best song (seresth git) awas padhni chahiya. kuran ki lute jati ke bare me padhe.