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Tuesday, May 19, 2009

युवाओं का उत्साह- माशा अल्लाह!

छाम्माक्छाल्लो दो दिनों से अपने एक प्रशिक्षण कार्यक्रम पर है। अलग-अलग जगह के अलग-अलग उम्र के सहभागी हैं। इनमेंसे एक सहभागी है एकदम नई उम्र काम एक लड़का, बच्चा कहना जिसे ज़्यादा ठीक रहेगा। मगर दफतर है, इसलिए सहभागी ही कहा जा सकता है। वह नई उम्र का है, अभी-अभी कम्पनी ज्यायन की है। उत्साह से लबरेज, काम में तेज़ और कुछ न कुछ करमे के माद्दे से भरा। अभी अभी उसके साथ १५ मिनट तक बातें हुई। वह अपने काम और काम में अपनी सफलता की बातें बताता रहा। छाम्माक्छाल्लो को भी उसने फ़टाफ़ट दो-तीन सलाहें दे दीं। सलाह अच्छी हैं, कितनी कार्यान्वित की जा सकती हैं, यह बाद की बातें हैं। मगर अभी जो मुख्य बातें उभर कर आई, वह यह की नए बच्चे काम कराने के लिए बने हैं, उनसे उनके मन की बातें निकलवाइये, उनसे उनके कांसेप्ट पर बातें करें और उसे यथा सम्भव कार्यान्वित करें। कोई शक नहीं की आपके कार्य क्षेत्र में एक नया स्पंदन आएगा।
अफसोस यह है की हमारी व्यवस्था में ऊंचे ऊंचे पदों पर बड़ी उम्र के लोग बैठे होते हैं। उनका भी दोष नहीं होता। अपनी सेवा देते-देते अपनी कार्य कुशलता के बल पर वे इस ऊंचाई तक पहुंचाते हैं। मगर ऊंचाई तक पहुँचने के बाद उनमें एक कमी यह अ जाती है की वे थोड़े हठीले हो जाते हैं। अपने अनुभव और उम्र से वे यह समझाने लगते हैं की उनकी ही बातें और विचार सही और कार्यान्वित कराने लायक हैं। ऐसे में सच्चमुच पीढी का संघर्ष सामने नज़र आने लगता है। युवाओं में उम्र का जोश, उम्र का उत्साह और स्फूर्ति होती है, जिसका लाभ बड़ी उम्र के बड़े अधिकारी अपने अनुभव और उनके उत्साह को ब्लेंड करके ले सकते हैं। इससे काम भी आगे बढेगा और कम्पनी भी। छाम्माक्छाल्लो यह देख कर बड़ी खुशहुई की उस युवा में काम कराने का अतिरिक्त जोश है। युवाओं से यही तो अपेक्षा है। वे देश और विश्व की नई ताक़त और जोश बनाकर आ सकते हैं। इससे समाज का हर पक्ष मजबूत बनेगा। छाम्माक्छाल्लो युवाओं की इस ताक़त और उत्साह के प्रति अपनी आस्था प्रकट करती है।
मगर इसके साथ ही छाम्माक्छाल्लो युवाओं की ताक़त को जाया होने देने, गैर परिणाम वाली जगह पर अपनी ताक़त बरबाद कराने के ख़िलाफ़ है। उनकी ताक़त बरबाद होने का मतलब है उनकी अपनी ताक़त के साथ-साथ देश, समाज, परिवार और विश्व की ताक़त का बरबाद होना।

3 comments:

RAJNISH PARIHAR said...

युवा लोगों का काम करने का नजरिया ही अलग है...आफिस में बैठे तुन्द्लाये बाबु अनुभव में बड़े जरूर है ..पर काम में नहीं..!उनका उत्साह मर चूका है जबकि युवा उत्साह से भरे है,वे कुछ करना चाहते है..पर अनुभव की कमी से कोई उन्हें भाव नहीं देता!एक बार मौका मिलने पर वे अपने को साबित कर सकते है..

Sachi said...

Nice article.

In India, people know how to kill talent. We need to encourage the talents.

Unknown said...

वास्तव में यदि युवा शक्ति और पुरानी पीढ़ी के अनुभव का सही मेल हो जाये तो हम बहुत आगे पहुँच जायेंगे।