आज भोपाल में हूँ। जब कभी यहं आती हूँ, अच्छा लगता है। अच्छे लोग, कला- संकृति की आब अब भी बची हुई दिखती है। कहीं भी आइये, कहीं ना कहीं, कुछ न कुछ आपकू दिख ही जायेगा। अभी यहाँ आदि रंग मेला लगा हुआ है। आदिवासियों की भूली- बिसरी प्रजातियों उनकी कला को सामने लानेका एउद्देस्ति से लगाया गया है यह मेला। वास्तव में कैसा है, यह तो देखने पर ही पाता चलेगा।
यह शहर धड़कना जानता है। मैं यहाँ की नहीं हूँ, फ़िर भी यहाँ आना अच्छा लगता है। हरी भटनागर, राजेश जोशी, कमला प्रसाद जी हैं। बारे अपनापे से मिलते हैं। सत्येन कुमार भी थे। बड़ी ही सौहार्द्र पूर्ण मुलाक़ात रही थी उनसे।
ये तो बुद्धिजीवी लोग हैं। यहाँ के लोग भी अपनी बातों में अदब का पुट भरने में पीछे नहीं रहते। बात काफी पुरानी है, शायद १५-१६ साल पुरानी। हमें भोपाल से इंदौर के लिए जाना था। हम पुराने भोपाल पहुंचे, जहाँ बड़ी मस्जिद या जमा मस्जिद के पास से टैक्सी मिलती थी, इंदौर जाने के लिए। हमने टैक्सी ली। मेरे सहयोगी ने मेराजानकारी में इजाफा करते हुए कहा कि यह यहाँ कि बड़ी मशहूर मस्जिद है। मुझे यह मस्जिद देख कर निदा फाज़ली का एक शेर याद आ गया। मैंने कहा-
"बच्चा बोला देख कर, मस्जिद आलीशान
अल्ला तेरे एक को इतना बड़ा मकान? "
टैक्सी ड्राइवर चचाजान शायद रफीक भाई थे या अशरफ भाई, (नाम याद नहीं आ रहा। बुजुर्ग। उन्होंने कहा, "मैडम, उन शायर जनाब को यह कहना चाहिए इस लाइन को तरमीम कर के-
"अल्ला तेरे एक को इतने सारे मकान?"
बात में दम था। मैंने उन्हें कहा, मैं आपकी यह तरमीम निदा साब तक ज़रूर पहुंचा दूंगी।"
और मुम्बई पहुँच कर मैंने निदा साब को फोन किया, सारा वाक़या सुनाया।
आज भी इतने सारे मन्दिर मस्जिद देखकर टैक्सी ड्राइवर चचाजान की बात याद आती है। भोपाल पहुँच कर तो याद आती ही आती है। यह भी कि हम एक दस बाई दस के कमरे के लिए तरसते हैं, और एक इस अनाम, अन्नं देह धरी के लिए इतने सारे इन्तजामात? खुदा खैर करे, ईश्वर, यदि आप कहीं हैं तो अपने साथ साथ सबका भला करे। मजाक में भी 'भाला' नहीं।
5 comments:
भोपाल में मुझे दो साल रहने का मौका मिला और आज मैं फर्क से कह सकता हूं कि वो दो साल मेरी जिंदगी के सबसे अच्छे और हसीन दिन थे।
बात में वाकई दम है.
एकदम सही कही टेक्सी वाले चचा ने! यही बात मंदिरों और गिरिजाघरों पर भी लागू होती है।
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लेकिन हम यह सच जानकर फ़िर से उस भगवान के लिये नये नये घर बनबा रहे हे कयो ?
Raj saab, yah to hamein tay jkarana hai ki ham kya chahate hain. ham kisi aur ko to nahin, par khud ko to badal hi sakate hain na!
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